आज उत्तर प्रदेश में 72825 प्रशिक्षु
प्राथमिक अध्यापकों की भर्ती के मामले ( रिट ए-76039 / 2011 यादव कपिलदेव
लालबहादुर बनाम स्टेट ऑफ़ यू.पी. व अन्य) की सुनवाई स्थगित करते हुए हुए
अदालत ने इसे आगामी 31 मई 2012 को मध्यावकाश के बाद पहले नंबर पर लिस्टेड
किया है जिसकी सुनवाई उक्त तिथि पर 2 बजे शुरू होगी. इलाहाबाद में इस
मामले में अभ्यर्थियों की ओर से पैरवी कर रहे टी.ई.टी. संघर्ष मोर्चा के
सक्रिय सदस्यों में से एक देवेन्द्र जी व राजेश राव जी से मिली जानकारी के
अनुसार, इस केस की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश श्री अरुण टंडन के आज डबल बेंच
के सदस्य के रूप में आज अन्य मामलों की सुनवाई में व्यस्त होने और समयाभाव
के कारण आज इस केस की सुनवाई की सम्भावना कमजोर पड़ती देख टी.ई.टी. मोर्चा
के वकील महोदय द्वारा अदालत से इस केस की गंभीरता को देखते हुए इसकी सुनवाई
को सुनिश्चित कर शीघ्र फैसले का अनुरोध किया गया तो माननीय न्यायाधीश
महोदय द्वारा केस को 31 मई को लंच के बाद पहले नंबर पर रखा गया ताकि इसे
सुनवाई और निर्णय के लिए पूरा समय मिल पाए और ग्रीष्मावकाश के पूर्व इसका
निस्तारण हो सके. न्यायाधीश महोदय द्वारा यह भी आश्वासन दिया गया था कि यदि
डबल बेंच के सामने पेश मामलों की सुनवाई के बाद यदि समय शेष रहता है तो इस
केस को आज भी सुन सकते हैं पर ऐसा संभव नहीं हो पाया.
Friday, 25 May 2012
RTET : हाईकोर्ट ने फर्स्ट लेवल पास बीएड अभ्यर्थियों की थर्ड ग्रेड टीचर भर्ती में प्रवेश पर लगाईं रोक
जोधपुर,
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा व न्यायाधीश संगीत लोढ़ा की
खंडपीठ ने शुक्रवार को राज्य सरकार की अपील की सुनवाई में हाईकोर्ट के ही
एकल पीठ के 19 मई 2012 को दिए गए उस आदेश पर रोक लगा दी है। जिसमें टेट के
फस्र्ट लेवल पास बीएड धारकों को तृतीय श्रेणी परीक्षा में प्रवेश दिए जाने
के आदेश दिए गए थे।
आदेश में यह भी कहा गया है कि इस अपील के साथ ही करीब 500 से अधिक याचिकाएं लंबित है जिनकी सुनवाई जुलाई माह में होनी है। राज्य सरकार चाहे तो भर्ती परीक्षा करवा सकती है, लेकिन इसके परिणाम उपरोक्त अपील व याचिकाओं के निस्तारण के अधीन रहेंगे। गौरतलब है कि राज्य सरकार की ओर से सूर्यप्रकाश व अन्य बनाम सरकार व वीराराम व अन्य बनाम सरकार याचिकाओं में न्यायाधीश गोपाल कृष्ण व्यास ने टेट के फस्र्ट लेवल में उत्तीर्ण बीएड धारकों को जून माह में आयोजित तृतीय श्रेणी अध्यापक भर्ती परीक्षा में शामिल किए जाने के आदेश जारी किए थे।
पहले एनसीटीई से मांगा था जवाब :
अपील की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को खंडपीठ ने पहले एनसीटीई से इस बात का स्पष्टीकरण मांगा था कि क्या वे 1 जनवरी 2012 के बाद में टैट के फस्र्ट लेवल पास बीएड धारकों को भर्ती परीक्षा में प्रवेश देने का इरादा है अथवा नहीं। इस पर एनसीटीई के अधिवक्ता कुलदीप माथुर व सरकार की ओर से अतिरिक्त महाअधिवक्ता जीआर पूनिया ने विरोध करते हुए कहा कि एनसीटीई को प्रवेश देने का अधिकार नहीं है जबकि अप्रार्थी याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता डॉ. पीएस भाटी ने जोरदार विरोध किया।
आदेश में यह भी कहा गया है कि इस अपील के साथ ही करीब 500 से अधिक याचिकाएं लंबित है जिनकी सुनवाई जुलाई माह में होनी है। राज्य सरकार चाहे तो भर्ती परीक्षा करवा सकती है, लेकिन इसके परिणाम उपरोक्त अपील व याचिकाओं के निस्तारण के अधीन रहेंगे। गौरतलब है कि राज्य सरकार की ओर से सूर्यप्रकाश व अन्य बनाम सरकार व वीराराम व अन्य बनाम सरकार याचिकाओं में न्यायाधीश गोपाल कृष्ण व्यास ने टेट के फस्र्ट लेवल में उत्तीर्ण बीएड धारकों को जून माह में आयोजित तृतीय श्रेणी अध्यापक भर्ती परीक्षा में शामिल किए जाने के आदेश जारी किए थे।
पहले एनसीटीई से मांगा था जवाब :
अपील की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को खंडपीठ ने पहले एनसीटीई से इस बात का स्पष्टीकरण मांगा था कि क्या वे 1 जनवरी 2012 के बाद में टैट के फस्र्ट लेवल पास बीएड धारकों को भर्ती परीक्षा में प्रवेश देने का इरादा है अथवा नहीं। इस पर एनसीटीई के अधिवक्ता कुलदीप माथुर व सरकार की ओर से अतिरिक्त महाअधिवक्ता जीआर पूनिया ने विरोध करते हुए कहा कि एनसीटीई को प्रवेश देने का अधिकार नहीं है जबकि अप्रार्थी याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता डॉ. पीएस भाटी ने जोरदार विरोध किया।
राजस्थान में फिर संशय के घेरे में फंसी थर्ड ग्रेड शिक्षक भर्ती !
तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा को
लेकर फिर संशय बन गया है। राज्य सरकार ने टेट के फर्स्ट लेवल में पास बीएड
डिग्रीधारकों को इस परीक्षा के योग्य ठहराने फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट की
खंडपीठ में अपील दायर की है। दरअसल, इस मामले में जोधपुर में हाईकोर्ट की
मुख्यपीठ व जयपुर पीठ ने अलग-अलग निर्णय दिए थे। जयपुर पीठ ने ऐसे
अभ्यर्थियों को परीक्षा के अयोग्य माना था, जबकि जोधपुर मुख्यपीठ ने इन्हें
योग्य ठहराया था।
शिक्षक भर्ती की परीक्षा भी 2 जून को है, ऐसे में मामला फिर कोर्ट में जाने से इस भर्ती परीक्षा पर संदेह के बादल गहरा गए हैं। राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता जीआर पूनिया ने अपील दायर की है। इसमें मामले के गुणावगुण स्तर पर नियमों के तहत आदेश पारित करने की गुहार की गई है। खंडपीठ में अपीलों की सुनवाई इसी सप्ताह हो सकती है।
2 जून को ही होगी परीक्षा
पंचायती राज विभाग के अनुसार शिक्षक भर्ती परीक्षा 2 जून को ही कराई जाएगी। अभ्यर्थियों के प्रवेश पत्र ऑनलाइन उपलब्ध कराने की तैयारी कर ली गई है। इसका काम पूरा होते ही इसकी सूचना जारी कर दी जाएगी।
शिक्षक भर्ती की परीक्षा भी 2 जून को है, ऐसे में मामला फिर कोर्ट में जाने से इस भर्ती परीक्षा पर संदेह के बादल गहरा गए हैं। राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता जीआर पूनिया ने अपील दायर की है। इसमें मामले के गुणावगुण स्तर पर नियमों के तहत आदेश पारित करने की गुहार की गई है। खंडपीठ में अपीलों की सुनवाई इसी सप्ताह हो सकती है।
2 जून को ही होगी परीक्षा
पंचायती राज विभाग के अनुसार शिक्षक भर्ती परीक्षा 2 जून को ही कराई जाएगी। अभ्यर्थियों के प्रवेश पत्र ऑनलाइन उपलब्ध कराने की तैयारी कर ली गई है। इसका काम पूरा होते ही इसकी सूचना जारी कर दी जाएगी।
Tips to control hypertension
The
force exerted by the blood flow on various artery walls is called blood
pressure. In recent days many people suffer from hypertension or high
blood pressure. Earlier stages of high blood pressure are symptom less,
so we hardly realize.
All of us should necessarily have our
blood pressure checked above 40 years. The check should be done at
periodic intervals as the condition cannot be known with just one
reading.
High blood pressure damages the heart
and the blood vessels. Often the cause of blood pressure is not known.
Age is also a factor that influences the blood pressure. Inheritance
is also a suspected factor for hypertension. Stress is also a factor
that increases the hypertension. Maintaining the blood pressure at a
normal level definitely improves the quality of life.
Blood pressure is expressed in two
numbers systolic and diastolic. The peak pressure at which the heart
beats to pump blood is called systolic and the pressure exerted when the
hearts rests between beats is the diastolic pressure. The instrument
that is used to measure the pressure components is called to
sphygmomanometer. Usually 120/80 is said to be the normal pressure
level.
Diet plays a very important role in the
treatment and prevention of hypertension. Human body tends to retain
excessive salt and fluids and this tendency also leads to hypertension.
A high sodium diet also is a reason for hypertension. It is
recommended to use the low-sodium salt instead of the normal salt.
Patients who are hypertensive should avoid packaged foods. Avoid
pickles.
Weight management is the key health tip
to maintain the levels of blood pressure. A slight increase in weight
also will lead to increase in blood pressure. Always opt for low fat
food. Food laden with fat not only increases weight but also increases
the blood pressure. Change to healthy cooking like steaming instead of
shallow fry. Increase the portion of raw foods in your diet. Try and
eat small portions of fruits and vegetables often. Use herbs and spices
to flavor the food.
Apart from diet and weight management
certain life style changes are necessary to manage the blood pressure
levels. Stay away from alcohol and smoking. Opt for a regular exercise
regime. Meditating for a few minutes every day could help bring down
the stress level and the proportional hypertension.
Always consult a doctor for treating
any kind of illness if you are hypertensive. Over-the-counter
medications are usually prescribed without the knowledge of the existing
hypertension condition or the past medical history would also
contribute to increase in blood pressure and in some cases may prove
fatal.
Young children should avoid using cell phone
Cells of children rapidly divide and hence are more sensitive to any radiation. The brain area exposed to radiation is also large
If the world health Organisation has classified mobile phones as “possible carcinogenic” on May 31, the Council of Europe’s parliamentary assembly took a proactive step by adopting a resolution on May 27.
The council has recommended restrictions on the use of mobile phones and wireless internet access in all schools thus making them healthier places for children.
The council’s recommendation states: “give preference to wired internet connections, and strictly regulate the use of mobile phones by schoolchildren on school premises”.
Wednesday, 23 May 2012
health tips and technics
Health
and Fitness is now one of the major concern areas
across the world. Easy lifestyle is what we are moving towards. Very
less of effort spent on most activities like, travel by motor vehicles,
air-conditioned environment, ready-made food stuff, etc.
Earlier
humans used to hunt for their living, due to which
their body
had to undergo a lot of physical exercise. Every
part of the body was exercised and the intake was more of natural
substances.
Today, we hardly do
any of those. Even a simple 30 mins per day of workouts and one good
nutritious meal a day can help improve our health. This easy life
has restricted humans to do that bit of physical
exercise
which is required to keep the body fit and healthy.
How do we ensure that we have
all that is required for a healthy living? This is a big question
among everyone. We need a fit and healthy
body. Good Health is all that one craves for. Becoming healthier
and fitter though not very difficult needs dedicated efforts.
Nutrition and Health
Diet
The
basic foundation for a healthy individual starts from his
foetal stage with proper and healthy nutrition derived from
his or her mother. Hence, a pregnant woman's diet stands atop
all diets.
Your
food shall be your medicine. Ayurveda has postulated
the role of food and especially nutritive foods for maintaining
health as well as cure of diseases. Nutrients are necessary
for the proper functioning of mental, physical, metabolic,
chemical and hormonal activities. The body is like a machine
that will repair and rebuild itself if proper nutrition
is provided by way of food.
Sumptous nutrition is available
in fruits and vegetables. Fruits have the capacity to give
all that a body needs. How to consume? What to consume? Which
fruit helps in which way? The answers to these questions can
be found in our Nutrition
and Healthy Diet Section
Exercise and Fitness
Health and Fitness can make
all that difference in one's life. Healthy living is all that
one needs, and to achieve that we picked up the best of the
articles from reliable sources and have presented here in
an organized manner. You might not be able to spend your valuable
time on complicated medications and diet controls, but, you
can find articles to help you have a better living using simple
and easy technics.
Ayurveda, a science in vogue
practiced since centuries, uses a wide variety of plants,
animal origin substances, mineral and metallic substances
to rebalance the diseased condition in the sick. A few tips
on simple treatment of life style diseases have been carefully
picked for the visitors of this website. These tips can help
reduce or control diseases like diabetes, cholesterol, blood
pressure, etc.
Wednesday, 16 May 2012
I Like This Artical So I Post It own Blog.
बस पलक झपकी ---- और सितारों के पार!
साइंस
के अनुसार दूरी का सीधा सम्बन्ध् उस रास्ते से होता है जिसपर चलकर कोई एक
बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक पहुंचता है। उदाहरण के तौर पर दो शहर अ और ब
हैं। अ और ब को आपस में जोड़ने वाले तीन रास्ते हैं। पहला रास्ता सौ
किलोमीटर लंबा है, दूसरा अस्सी किलोमीटर और तीसरा साठ किलोमीटर लंबा है। तो
पहले रास्ते से अ और ब के बीच दूरी हुई सौ किलोमीटर और तीसरे रास्ते से अ
और ब के बीच दूरी हुई साठ किलोमीटर। यह नियम पूरे यूनिवर्स पर लागू होता
है। इस तरह यह कहा जा सकता है कि कोई चीज़ एक ही समय में हमारे पास भी हो
सकती है और हमसे दूर भी। जैसा कि हम जानते हैं पृथ्वी गोल है। इसपर मान
लिया दो शहर हैं जो एक ही देश के अन्दर हैं। अगर इन दो शहरों के बीच देश के
अन्दर बनाये गये रास्तों में यात्रा करें तो यह दूरी कम होगी, और अगर एक
शहर से उल्टी दिशा में चलकर पूरी पृथ्वी की गोलाई तय करते हुए दूसरे
शहर में पहुचें तो यह दूरी बहुत ज्यादा होगी। और इस तरह एक ही समय में
दोनों शहरों के बीच दूरी बहुत कम भी कही जा सकती है और बहुत ज्यादा भी। और
साथ ही ‘कम’ वाली दूरी जितनी कम से कम होगी (यानि दोनों शहर जितने करीबतर
होंगे) उतनी ही ‘ज्यादा’ वाली दूरी ज्यादा से ज्यादा होगी (यानि दोनों
शहर उतने ही दूरस्थ होंगे)। ऐसा संभव है पृथ्वी के गोल होने की वजह से। तो
इस तरह दूरी उस सतह पर भी निर्भर करती है जिसपर वह दूरी तय होती है।
अब
बात करते हैं गणित की एक शाखा की जिसका नाम है कैलकुलस ऑफ
वैरिएशंस (Calculus of Variations)। इसकी शुरुआत 18 वीं सदी के
मशहूर गणितज्ञ लिओन्हार्ड यूलर और लाग्रांज ने की थी। इस गणित के द्वारा हम
कुछ चीज़ों की ऊंचाई या गहराई की सीमा (Maxima or Minima) मालूम करते हैं।
इन चीज़ों में ’शामिल हैं दूरी, समय या फिर ऊर्जा इत्यादि। इस गणित के कुछ
उदाहरण इस प्रकार हैं।
माना
किसी ऊंची जगह से किसी निचली जगह को जोड़ने के लिये एक रास्ता बनाना है,
और उस रास्ते पर कोई गेंद लुढ़काई जानी है। तो गेंद को नीचे पहुंचने में कम
से कम समय लगे, इसके लिये रास्ते का आकार विशेष रूप का बनाना होगा। और इस
आकार का नाम है सायक्लॉयड। इसे कैलकुलस ऑफ वैरियेशन्स से मालूम किया गया
है।
मान
लिया आपके पास एक निश्चित लम्बाई की रस्सी है। उस रस्सी से आपको एक मैदान
इस तरह घेरना है कि मैदान का ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रफल अन्दर समा जाये।
ऐसी हालत में रस्सी से जो आकार बनेगा वह एक वृत्त होगा। इसी तरह अगर दो अलग
अलग तरह की सतहें हैं (जैसे कि एक घड़े जैसी है और दूसरी गिलास जैसी) तो
एक सतह से दूसरी सतह तक कम से कम दूरी एक ऐसी रेखा के रास्ते पर होगी जो
दोनों सतहों को 90 डिग्री के कोण पर काटेगी।
भौतिकी
की समस्याएं भी कैलकुलस ऑफ वैरियेशन्स से हल की जाती हैं। मान लिया
अंतरिक्ष में किसी कण को एक जगह से दूसरी जगह की यात्रा करनी है। मान लिया
कि अंतरिक्ष में कण की गतिज व स्थितिज ऊर्जा हर बिंदु पर अलग अलग है। इस
हालत में कण एक ऐसे रास्ते को चुनेगा जहाँ गतिज व स्थितिज ऊर्जा का अन्तर
न्यूनतम हो जाये।
इस
तरह कैलकुलस ऑफ वैरिये’शन्स के द्वारा हम किसी वस्तु की ‘न्यूनतम’
(Minimum) और अधिकतम (Maximum) दशा ज्ञात कर सकते हैं। लेकिन इस कैलकुलस
में एक कमी है। जब किसी वस्तु की न्यूनतम दशा मालूम की जाती है तो आमतौर पर
अधिकतम दशा मालूम नहीं हो पाती, या फिर ये दशा अनन्त आती है। इसी तरह
अधिकतम दशा मालूम करते समय न्यूनतम दशा मालूम नहीं हो पाती या फिर ये
ऋणात्मक अनन्त आती हैं।
लेकिन
अगर उपरोक्त धारणा को ध्यान में रखा जाये कि एक न्यूनतम दूरी किसी और पथ
के द्वारा अधिकतम भी होती है तो इसे कैलकुलस ऑफ वैरिये’शन्स के साथ जोड़ने
पर कुछ महत्वपूर्ण परिणाम निकल सकते हैं।
एक
महत्वपूर्ण परिणाम यह होगा कि एक अधिकतम दशा किसी और पथ के द्वारा न्यूनतम
दशा भी होगी। जैसा कि इससे पहले पृथ्वी पर दो बिन्दुओं के उदाहरण में देखा
गया। अगर ये दो बिन्दु एक दूसरे को छू रहे हों तो एक रास्ते से इनके बीच
दूरी शून्य हो गयी। लेकिन अगर उल्टा रास्ता लिया जाये जो पहली लोके’शन से
निकलकर पूरे ग्लोब को घूमते हुए दूसरी लोके’शन पर आकर मिले तो इस रास्ते पर
दूरी अधिकतम हो जायेगी। यानि हम कह सकते हैं कि दोनों एक्सट्रीमम यानि
अधिकतम व न्यूनतम की सिचुएशन एक ही है, जबकि हम रास्तों को परिभाषित कर रहे
हैं। और अगर ये रास्ते किसी बन्द सतह पर हैं (जैसे कि गोल ज़मीन) तो
अधिकतम-न्यूनतम का साथ होना पूरी तरह स्पष्ट है।
अब
एक दूसरी परिस्थिति की बात करें। मान लिया दो लोके’शन के बीच हम सिर्फ
‘न्यूनतम’ दूरी ही चाहते हैं। तो ये दूरी भी उस सतह पर निर्भर करेगी जो
दोनों लोके’शन के बीच में है। अगर ये सतह बदल दी जाये तो न्यूनतम भी बदल
जायेगा। हो सकता है कभी ये दूरी शून्य हो जाये तो कभी अनन्त। यही बात
अधिकतम के लिये भी लागू होगी। इस तरह हम देखते हैं कि दो लोकेशन के बीच
दूरी अलग अलग सिचुएशन में कई तरीकों से अधिकतम और न्यूनतम होती है।
ये
बात न सिर्फ दूरी के लिये बल्कि समय, ऊर्जा, गति जैसी कई भौतिक राशियों के
लिये लागू होती है। फिर अगर सतह भी रफ्तार में हो या लोके’शन बदल रही हो
तो अधिकतम-न्यूनतम की एक पूरी चेन बन जायेगी जिनमें एक अधिकतम कुछ समय के
बाद न्यूनतम हो जायेगा और एक न्यूनतम कुछ समय के बाद अधिकतम हो जायेगा।
कुछ
इसी तरह की सिचुएशन आइन्स्टीन के सामने भी आयी थी जब उसने सापेक्षता का
सिद्धांत दुनिया के सामने रखा। और तब उसने ये स्टेटमेन्ट दिया था, The most
incomprehensible thing about the world is that it is comprehensible. सापेक्षता
के सिद्धांत में जिस गणित का इस्तेमाल हुआ है वह कैलकुलस ऑफ वैरिये’शन्स
से ही विकसित हुई है। आज हम उसे डिफरें’शियल ज्योमेट्री के नाम से जानते
हैं। डिफरें’शियल ज्योमेट्री
यूनिवर्स को समझने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है और आज गणित की इसी शाखा पर
सबसे ज्यादा काम हो रहा है। लेकिन इस ज्योमेट्री का जो अहम नतीजा है वह यही
है कि ‘जो चीज़ जितनी दूर होती है वह उतनी ही करीब भी हो सकती है।’ और यह
वाक्य केवल कोरी फिलास्फी नहीं है बल्कि वार्महोल (Wormholes) के रूप में
एक संभाव्य भौतिक सच्चाई है।
जब
आइंस्टीन ने अपने सापेक्षता के सिद्धान्त को डिफरें’शियल ज्योमेट्री की
समीकरणों के द्वारा प्रस्तुत किया तो वैज्ञानिकों ने उन समीकरणों का हल
ज्ञात करने की कोशिश की। इन समीकरणों का हल सबसे पहले पेश किया
शिवर्ज़चाइल्ड नाम के वैज्ञानिक ने। इस हल के द्वारा जो चौंका देने वाले
नतीजे सामने आये उनमें शामिल थे ब्लैक होल और वार्महोल । वार्महोल स्पेस
टाइम में बने ऐसे रास्तों को कहते हैं जो यूनिवर्स के दो बिन्दुओं या दो
यूनिवर्स के बीच शार्ट कट्स होते हैं। यानि ज़ाहिरी तौर पर दोनों जगहें एक
दूसरे से निहायत दूर होती हैं और एक जगह से दूसरी जगह पहुंचना लगभग
नामुमकिन होता है। लेकिन वार्महोल के द्वारा ये दूरी बहुत ही कम वक्त में
तय हो जाती है।
वार्महोल्स
बनना कैसे मुमकिन हो सकता है, इसे समझ पाना निहायत मुश्किल है। क्योंकि सब
कुछ गणितीय समीकरणों में सिमटा हुआ है। लेकिन मोटे तौर पर यह इस नियम ‘जो
चीज़ जितनी दूर होती है वह उतनी ही करीब भी होती है।’ का ही समीकरणीय रूप
होता है।
इसे
भौतिक रूप में समझने के लिये एक उदाहरण पर विचार कीजिए। मान लिया हमारी
ज़मीन से कुछ दूर पर एक तारा मौजूद है। उस तारे की रो’शनी हम तक दो तरीके
से आ सकती है। एक सीधे रास्ते के द्वारा, और दूसरे एक भारी पिण्ड से गुजरकर
जो किसी और दिशा में जाती हुई तारे की रो’शनी को अपनी उच्च ग्रैविटी की
वजह से मोड़ कर हमारी ज़मीन पर भेज देता है। जबकि तारे से आने वाली
सीधी रोशनी की किरण एक ब्लैक होल द्वारा रुक जाती है जो कि पृथ्वी और तारे
के बीच में मौजूद है। अब पृथ्वी पर मौजूद कोई दर्शक जब उस तारे की दूरी
नापेगा तो वह वास्तविक दूरी से बहुत ज्यादा निकल कर आयेगी क्योंकि यह दूरी
उस किरण के आधार पर नपी होगी जो पिण्ड द्वारा घूमकर दर्शक तक आ रही है।
जबकि ब्लैक होल के पास से गुजरते हुए उस तारे तक काफी जल्दी पहुंचा जा सकता
है। बशर्ते कि इस बात का ध्यान रखा जाये कि ब्लैक होल का दैत्याकार आकर्षण
यात्री को अपने लपेटे में न ले ले। इस तरह की सिचुएशन ऐसे शार्ट कट्स की
संभावना बता रही है जिनसे यूनिवर्स में किसी जगह उम्मीद से कहीं ज्यादा
जल्दी पहुंचा जा सकता है। इन्ही शार्ट कट्स को वार्म होल्स (Wormholes)
कहा जा सकता है।
ये
एक आसान सी सिचुएशन की बात हुई। स्थिति तब और जटिल हो जाती है जब हम देखते
हैं कि ज़मीन, पिण्ड, तारा, ब्लैक होल सभी अपने अपने पथ पर गतिमान हैं।
ऐसे में कोई नतीजा निकाल पाना निहायत मुश्किल हो जाता है।
हालांकि
वार्महोल्स का कांसेप्ट अभी सिर्फ थ्योरी की हद तक है। सापेक्षता सिद्धांत
की गणितीय समीकरणें इसको मुमकिनात में से दिखाती हैं और ये मुमकिन मालूम
होता है एक तरीके से बहुत ज्यादा दिखने वाली दूरियां वार्महोल के तरीकों
में बहुत कम हो सकती हैं। लेकिन प्रायोगिक रूप से अभी इनका सिद्ध होना बाकी
है। लेकिन ये भी तय है कि अगर वार्महोल की हकीकत साइंस ने देख ली तो
यूनिवर्स का हज़ारों मील का सफर मिनटों में तय होना मुमकिन हो जायेगा।
’शिवर्जचाइल्ड
वार्महोल ऐसे रास्तों की बात भी करता है जो दो ऐसी कायनातों को जोड़ता है
जिनमें से एक खत्म हो रही हो और दूसरी पैदा हो रही हो। दोनों कायनातों को
अलग करने की खाई है ब्लैक होल। और वार्महोल इसी ब्लैक होल को पार करने का
पुल है। ये अलग बात है कि फिलहाल ’शिवर्जचाइल्ड की मैथेमैटिक्स इस वार्महोल
के ज़रिये एक यूनिवर्स से दूसरे तक पार होने को नामुमकिन बताती है क्योंकि
उससे पहले ही ये वार्महोल खत्म हो जायेगा और उससे गुज़रने वाला ब्लैक होल
में गिर जायेगा।
वार्महोल टाइम मशीन का बनना भी मुमकिन बताते हैं जिसके ज़रिये इंसान बीते हुए कल में या आने वाले कल का सफर कर सकता है।
writer- जीशान हैदर जैदी thanks
Tuesday, 15 May 2012
मासूम नाज़ुक सी लड़की
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी
चलो चेक करूँ ई-मेल आती ही होगी
कह कह के लॉगिन करती तो होगी
कोई कॉल शायद मिस हो गया हो
सेल फोन बार बार देखती तो होगी
और फिर फोन की घंटी बजते ही वो
उसी फोन से डर डर जाती तो होगी
चलो पिंग करूँ जी में आता तो होगा
मगर उंगलियां कँप-कँपाती तो होंगी
माऊस हाथ से छूट जाता तो होगा
उमंगें माऊस फिर उठाती तो होंगी
मेरे नाम खास ईमोटिकॉन सोचकर
वो दांतों में उँगली दबाती तो होगी
चलो देखूँ क्या कुछ नया हो रहा है
कह कह के फ़ेसबुक पे आती तो होगी
कोई 'अपडेट' शायद मिस हो गया हो
बार-बार टाईम-लाईन टटोलती तो होगी
मेरी 'अपडेट' में ख़ुद को कविता में पाकर
बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा
लिखूँ कमेंट जी में आता तो होगा
कीबोर्ड पे उंगली थरथराती तो होगी
कई बार मन की उमंगो को लिख कर
वो ’कैन्सल’ बटन फ़िर दबाती तो होगी
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी
चलो चेक करूँ ई-मेल आती ही होगी
कह कह के लॉगिन करती तो होगी
कोई कॉल शायद मिस हो गया हो
सेल फोन बार बार देखती तो होगी
और फिर फोन की घंटी बजते ही वो
उसी फोन से डर डर जाती तो होगी
चलो पिंग करूँ जी में आता तो होगा
मगर उंगलियां कँप-कँपाती तो होंगी
माऊस हाथ से छूट जाता तो होगा
उमंगें माऊस फिर उठाती तो होंगी
मेरे नाम खास ईमोटिकॉन सोचकर
वो दांतों में उँगली दबाती तो होगी
चलो देखूँ क्या कुछ नया हो रहा है
कह कह के फ़ेसबुक पे आती तो होगी
कोई 'अपडेट' शायद मिस हो गया हो
बार-बार टाईम-लाईन टटोलती तो होगी
मेरी 'अपडेट' में ख़ुद को कविता में पाकर
बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा
लिखूँ कमेंट जी में आता तो होगा
कीबोर्ड पे उंगली थरथराती तो होगी
कई बार मन की उमंगो को लिख कर
वो ’कैन्सल’ बटन फ़िर दबाती तो होगी
Wednesday, 9 May 2012
कल्पना का संसार:
कल्पना का संसार
सपनो से अधिक बड़ा होता है ,सपने जो हमे आते हैं वो असल में कही ना कही
हमारी कल्पना से ही जुड़े होते हैं !जब हम बच्चे होते हैं तो तब
हमारा मस्तिष्क एक कोरे काग़ज़ की तरह होता है धीरे धीरे जैसे जैसे
हमारा मस्तिष्क परिपक्व होता जाता है वैसे वैसे उस में हमारे आस पास जीये
अनुभव और ज़िंदगी की यादे उस में रेकॉर्ड होने लगती हैं फ़िर जैसा फिर
हमे अपने आस पास का माहोल मिलता है वैसे ही हमारे विचार बनते जाते हैं
उसी के आधार पर हम कल्पना करते हैं और उस के आधार पर हम में सपने
जागने लगते हैं!
हमारा शरीर दो तरह से क्रिया करता है एक अपने दिल से यानी अपनी इच्छा से दूसरी बिना इच्छा के जैसे किसी गर्म चीज़े के हाथ पर पड़ते ही हम हाथ हटा लेते हैं हमे सोचना नही पड़ता दूसरी कुछ बाते हम सोच के करते हैं किसी को किसी भी कार्य को करें के लिए पहले उसकी एक कल्पना बनाते हैं ! दिल में उसी कल्पना का हमारे जीवन में बहुत ही महत्व है, कल्पना ना हो जीवन भी नही जीया जा सकता ,कल्पना जो हम सोचते हैं वो भी एक मज़ेदार दुनिया है ,वहाँ समय ठहर जाता है और हम पल भर में जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं एक दुनिया अपने सपनो की बसा लेते हैं इसी के आधार पर कई महान काव्य लिखे गये ,कई अविष्कार हुए !
हर व्यक्ति की कल्पना करने की क्षमता भी अलग-अलग होती है ,कुछ लोग बचपन से ही कल्पना की दुनिया में खोए रहते हैं जैसे कवि :) बचपन से ही कोई कल्पना करके कविता में डूबे रहते हैं ... पर अधिक कल्पना करना भी जीवन में कभी कभी मुसीबत पैदा कर देता है कल्पना शीलता का काफ़ी इच्छा हमारे अवचेतन मन में रेकॉर्ड होता रहता है इसी के आधार पर हम किसी की भावनाओं का पता लगातें हैं... पर यह कल्पनाए क्यों ,कहाँ से आती है ?इसके लिए कौन सी रासयनिक क्रिया काम आती है, यह अभी तक पता नही चल पाया है पर जब भी इंसान फुरसत में होता है , तो वह कल्पना के जादुई दुनिया में डूब जाता है तब वो जो असलियत में अपनी ज़िंदगी में नही कर पाता उसको अपनी कल्पना कि दुनिया में सकार करता है और फ़िर से वहीं से प्रेरणा पा के करने की कोशिश करता है !
कल्पना तो सभी करते हैं लेकिन उसको शब्दों का रूप कोई कोई ही दे पाता है कभी कभी लिखते वक़्त किसी लेखक के साथ ऐसी हालत आ जाती है की वो अपनी कल्पना को कोई शब्द रूप नही दे पाते तब इसको Writeries Blcok कहते हैं ....तब उसको शब्द रूप में ढालने के लिए किस प्रेरणा की ज़रूरत होती है ,मतलब कोई घटना या कोई घटना जिस से उसकी कल्पना शब्दों में ढल सके! कल्पना ना होती तो हमारा जीवन भी नीरस सा हो जाता क्यूंकि इस के सहारे हम वो काम कर लेते हैं जो हम वास्तविक ज़िंदगी में कभी कभी नही कर पाते और यदि यह नही कर पाते तो हमें बहुत अधिक तनाव को झेलना पड़ता! इस प्रकार यह कल्पना शक्ति ही हमारे कुछ कर पाने वाले,कुछ न कर पाने वाले तनाव को संतुलित रखती है.... नही तो कई तरह की समस्या पैदा हो जाती जीवन में ,!प्रकति ने शरीर से बेकार की चीज़ो को बहार निकालने का कोई ना कोई रास्ता बना रखा है हमारे शरीर में ही!
कल्पना कई तरह की होती है ....कल्पना रचनात्मक भी हो सकती है और दूसरों को नुकसान देने वाली भी ,तीसरी कल्पना सच में केवल कल्पना होती है केवल मन की तस्सली के लिए की जाती है कोई कल्पना सिर्फ़ उतनी ही ठीक है जो मानसिक तनाव कम करे ना कि और बढ़ा दे! ज्यादा कल्पना भी मानसिक तनाव का कारण बन सकती है जब हम उस काम को पूरा होते नही देख पाते और वो मनोविकार का रूप धारण कर लेती है इस से मनुष्य के अंदर हीन भावना आ जाती है और उसकी जिन्दगी उस से प्रभावित होने लगती है फिर इस उपचार की जरुरत पड़ती है इस लिए सिर्फ़ उतनी ही कल्पना करें जितनी जीने के लिए जरुरी है और जो जीवन में सम्भव हो सकती है !!
हमारा शरीर दो तरह से क्रिया करता है एक अपने दिल से यानी अपनी इच्छा से दूसरी बिना इच्छा के जैसे किसी गर्म चीज़े के हाथ पर पड़ते ही हम हाथ हटा लेते हैं हमे सोचना नही पड़ता दूसरी कुछ बाते हम सोच के करते हैं किसी को किसी भी कार्य को करें के लिए पहले उसकी एक कल्पना बनाते हैं ! दिल में उसी कल्पना का हमारे जीवन में बहुत ही महत्व है, कल्पना ना हो जीवन भी नही जीया जा सकता ,कल्पना जो हम सोचते हैं वो भी एक मज़ेदार दुनिया है ,वहाँ समय ठहर जाता है और हम पल भर में जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं एक दुनिया अपने सपनो की बसा लेते हैं इसी के आधार पर कई महान काव्य लिखे गये ,कई अविष्कार हुए !
हर व्यक्ति की कल्पना करने की क्षमता भी अलग-अलग होती है ,कुछ लोग बचपन से ही कल्पना की दुनिया में खोए रहते हैं जैसे कवि :) बचपन से ही कोई कल्पना करके कविता में डूबे रहते हैं ... पर अधिक कल्पना करना भी जीवन में कभी कभी मुसीबत पैदा कर देता है कल्पना शीलता का काफ़ी इच्छा हमारे अवचेतन मन में रेकॉर्ड होता रहता है इसी के आधार पर हम किसी की भावनाओं का पता लगातें हैं... पर यह कल्पनाए क्यों ,कहाँ से आती है ?इसके लिए कौन सी रासयनिक क्रिया काम आती है, यह अभी तक पता नही चल पाया है पर जब भी इंसान फुरसत में होता है , तो वह कल्पना के जादुई दुनिया में डूब जाता है तब वो जो असलियत में अपनी ज़िंदगी में नही कर पाता उसको अपनी कल्पना कि दुनिया में सकार करता है और फ़िर से वहीं से प्रेरणा पा के करने की कोशिश करता है !
कल्पना तो सभी करते हैं लेकिन उसको शब्दों का रूप कोई कोई ही दे पाता है कभी कभी लिखते वक़्त किसी लेखक के साथ ऐसी हालत आ जाती है की वो अपनी कल्पना को कोई शब्द रूप नही दे पाते तब इसको Writeries Blcok कहते हैं ....तब उसको शब्द रूप में ढालने के लिए किस प्रेरणा की ज़रूरत होती है ,मतलब कोई घटना या कोई घटना जिस से उसकी कल्पना शब्दों में ढल सके! कल्पना ना होती तो हमारा जीवन भी नीरस सा हो जाता क्यूंकि इस के सहारे हम वो काम कर लेते हैं जो हम वास्तविक ज़िंदगी में कभी कभी नही कर पाते और यदि यह नही कर पाते तो हमें बहुत अधिक तनाव को झेलना पड़ता! इस प्रकार यह कल्पना शक्ति ही हमारे कुछ कर पाने वाले,कुछ न कर पाने वाले तनाव को संतुलित रखती है.... नही तो कई तरह की समस्या पैदा हो जाती जीवन में ,!प्रकति ने शरीर से बेकार की चीज़ो को बहार निकालने का कोई ना कोई रास्ता बना रखा है हमारे शरीर में ही!
कल्पना कई तरह की होती है ....कल्पना रचनात्मक भी हो सकती है और दूसरों को नुकसान देने वाली भी ,तीसरी कल्पना सच में केवल कल्पना होती है केवल मन की तस्सली के लिए की जाती है कोई कल्पना सिर्फ़ उतनी ही ठीक है जो मानसिक तनाव कम करे ना कि और बढ़ा दे! ज्यादा कल्पना भी मानसिक तनाव का कारण बन सकती है जब हम उस काम को पूरा होते नही देख पाते और वो मनोविकार का रूप धारण कर लेती है इस से मनुष्य के अंदर हीन भावना आ जाती है और उसकी जिन्दगी उस से प्रभावित होने लगती है फिर इस उपचार की जरुरत पड़ती है इस लिए सिर्फ़ उतनी ही कल्पना करें जितनी जीने के लिए जरुरी है और जो जीवन में सम्भव हो सकती है !!
प्रकृति का 'दोहन' नहीं 'संरक्षण' की ज़रूरत (5 जून विश्व पर्यावरण विशेष)

वृक्ष धरा का हैं श्रंगार.
इनसे करो सदा तुम प्यार.
इनकी रक्षा धर्म तुम्हारा.
ये हैं जीवन का आधार..
(कमल सोनी)>>>> 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस है. प्रकृति के अंधाधुंध दोहन ने हालात ख़राब कर दिया है, हम अपने स्वार्थ में आने वाली पीढ़ी की चिंता नहीं कर रहे हैं. साल-दर-साल बारिश का कम होना, भूजल स्तर कम होना और इसके विपरीत गर्मी की तपन बढ़ते जाना आदि चीजें सीधे-सीधे इसी पर्यावरण से जुड़ी हैं. जब इसके दृष्टिगोचर होते परिणामों के बाद अब तो हमें चेत ही जाना चाहिए कि यह पर्यावरण हमारे लिए जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी है. और इसके दोहन नहीं संरक्षण की ज़रूरत है. तो क्यों न सर्वप्रथम इसकी रक्षा की जाए और समय रहते ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों से बचा जाए. सच पूछें तो पर्यावरण की सुरक्षा के लिए हमे कुछ ज्यादा करना भी नहीं है. सिर्फ एक पहल करनी है यानी खुद को एक मौका देना है. हमारी छोटी-छोटी, समझदारी भरी पहल पर्यावरण को बेहद साफ-सुथरा और तरो-ताजा कर सकती है. प्रदूषण न केवल राष्ट्रीय अपितु अन्तर्राष्ट्रीय भयानक समस्या है. मनुष्य के आसपास जो वायुमंडल है वो पर्यावरण कहलाता है. पर्यावरण का जीवजगत के स्वास्थ्य एवं कार्यकुशलता से गहरा सम्बन्ध है. पर्यावरण को पावन बनाए रखने में प्रकृति का विशेष महत्व है. प्रकृति का संतुलन बिगड़ा नहीं कि पर्यावरण दूषित हुआ नहीं. पर्यावरण के दूषित होते ही जीव- जगत रोग ग्रस्त हो जाता है. वातावरण में संतुलन बनाए रखने वाला माध्यम अर्थात् पेड़- पौधे उपेक्षा का शिकार बनाए जा रहे हैं. समय रहते यह क्रम यदि रुका नही, वृक्षारोपण अभियान तीव्रता से तथा सुरक्षात्मक ढंग से यदि चलाया नही गया, तो प्रदूषण असाध्य रोग बन जाएगा. मनुष्य तथा अन्य वन जीवों को अपने जीवन के प्रति संकट का सामना करना पड़ रहा है. प्रदूषित पर्यावरण का प्रभाव पेड़ पौधे एवं फसलों पर पड़ा है. समय के अनुसार वर्षा न होने पर फसलों का चक्रीकरण भी प्रभावित हुआ है. प्रकृति के विपरीत जाने से वनस्पति एवं जमीन के भीतर के पानी पर भी इसका बुरा प्रभाव देखा जा रहा है. जमीन में पानी के श्रोत कम हो गए हैं. इस पृथ्वी पर कई प्रकार के अनोखे एवं विशेष नस्ल की तितली, वन्य जीव, पौधे गायब हो चुके हैं. कहा भी जाता है कि एक पेड़ लगाने से एक यज्ञ के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है. कम से कम एक पेड़ जरूर लगाएँ और इसकी देखभाल भी करें. कुछ वर्षों बाद यह बड़ा होगा देखकर दिल को सुकून देगा. हर साल या 2 साल में या 5 साल में भी 1-1 वृक्ष आपने लगाया तो मैं समझता हूँ प्रकृति भी इसका तहेदिल से जरूर शुक्रिया अदा करेगी और आगे चलकर इससे निश्चित रूप से हम लाभान्वित होंगे.
संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहल :- विश्व पर्यावरण दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1972 में की थी. इसी साल मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम कॉन्फ्रंस आयोजित की गई. विश्व पर्यावरण दिवस दरअसल, इसके प्रतीक के रूप में ही निर्धारित किया गया था. तभी से यह हर साल पांच जून को मनाया जाता है. विश्व पर्यावरण दिवस के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र दुनियाभर में पर्यावरण के प्रति जागरूकता कायम करने का प्रयास करता है. इसी दिन विभिन्न देशों में पर्यावरण सुरक्षा से जुड़े कई सरकारी कार्यक्रम भी शुरू किए जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि पर्यावरण की सुरक्षा आम आदमी की कोशिशों से ही संभव हो सकती है. सभी को समझाना होगा कि इस काम के लिए वह कितने ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. पूरी दुनिया को पर्यावरण बचाने के लिए लोगों के साथ देशों को भी आपस में मिलकर काम करना होगा, जिससे दुनियाभर के लोग सुरक्षित और संपन्न भविष्य का लाभ ले सकें. लेकिन इस वर्ष हम 38 वां विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं पिछले 38 सालों से इस परम्परा का बखूबी पालन कर रहे हैं लेकिन इसके कितने बेहतर परिणाम मिले वे हमारे सामने ही है. हालाकि इस दिशा में कुछ हद तक सफलता ज़रूर मिली लेकिन क्या इसे सराहनीय कहा जा सकता है... .. ? क्या आज जो परिणाम हमारे सामने है उन्हें आशानुरूप कहा जा सकता है... .. ? नहीं
ग्लोबल वार्मिंग पर सामाजिक और राजनीतिक बहस :- वैज्ञानिक निष्कर्षों के प्रचार के कारण दुनिया में राजनीतिक और आर्थिक बहस छिड़ गई है. गरीब क्षेत्रों, खासकर अफ्रीका, पर बडा जोखिम दिखाई देता है जबकि उनके उत्सर्जन विकसित देशों की तुलना में काफी कम रहे हैं. इसके साथ ही, विकासशील देश की क्योटो प्रोटोकॉल के प्रावधानों से छूट संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया, द्वारा नकारी गई है और इसको अमेरिका के अनुसमर्थन का एक मुद्दा बनाया गया है. जलवायु परिवर्तन का मुद्दा एक नया विवाद ले आया है कि ग्रीनहाउस गैस के औद्योगिक उत्सर्जन को कम करना फाइदेमंद है या उस पर होने वाला खर्च ज्यादा नुकसानदेह है कई देशों में चर्चा की गई है कि वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को अपनाने में कितना खर्च आएगा और उसका कितना लाभ होगा. प्रतियोगी संस्थान और जैसी कंपनियों ने यह कहा है कि हमें जलवायु की ज्यादा बुरी हालत की कल्पना करके ऐसे कदम नही उठाने हैं जो बहुत ज्यादा खर्चीले हों. इसी तरह, पर्यावरण की विभिन्न सार्वजनिक लॉबी और कई लोगों ने अभियान शुरू किए हैं जो जलवायु परिवर्तन के जोखिम पर ज़ोर डालते हैं और कड़े नियंत्रण करने की वकालत करते हैं. जीवाश्म ईंधन की कुछ कंपनियों ने अपने प्रयासों को हाल के वर्षों में कम किया है या ग्लोबल वार्मिंग के लिए नीतियों की वकालत की है. विवाद का एक और मुद्दा है कि उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं जैसे भारत और चीन से कैसी उम्मीद की जानी चाहिए कि वे अपने उत्सर्जन को कितना कम करें. हाल की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के सकल राष्ट्रीय उत्सर्जन अमरीका से ज्यादा हो सकते हैं, पर चीन ने कहा है कि प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अमरीका से पाँच गुना कम है इसलिए उस पर यह बंदिश नही होनी चाहिए. भारत ने भी इसी बात को दोहराया है जिसे क्योटो प्रतिबंधों से छूट प्राप्त है और जो औद्योगिक उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है.
पूरी दुनिया के मुकाबले हिमालय ज्यादा तेज़ गति से गर्म हो रहा है एक आंकड़े के मुताबिक गत 100 वर्षों में हिमालय के पश्चिमोत्तर हिस्से का तापमान 1.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है. जो कि शेष विश्व के तापमान में हुए औसत इजाफे (0.5-1.1 डिग्री सेल्सियस) से अधिक है. रक्षा शोध एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) और पुणे विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने क्षेत्र में बर्फबारी और बारिश की विविधता का अध्ययन किया था वैज्ञानिकों ने पाया कि एक और बढ़ती गर्मी के कारण सर्दियों की शुरुआत अपेक्षाकृत देर से हो रही है तो दूसरी और बर्फबारी में भी कमी आ रही है. शोधकर्ताओं का कहना है कि पश्चिमोत्तर हिमालय का इलाका पिछली शताब्दी में 1.4 डिग्री सेल्सियस गर्म हुआ है जबकि दुनिया भर में तापमान बढ़ने की औसत दर 0.5 से 1.1 डिग्री सेल्सियस रही है. “अध्ययन का सबसे रोचक निष्कर्ष यह रहा कि पिछले तीन दशकों के दौरान पश्चिमोत्तर हिमालय क्षेत्र के अधिकतम और न्यूनतम तापमान में तेज इजाफा हुआ जबकि दुनिया के अन्य पर्वतीय क्षेत्रों जैसे कि आल्प्स और रॉकीज में न्यूनतम तापमान में अधिकतम तापमान की अपेक्षा अधिक तेजी से वृद्धि हुई है.” अध्ययन के लिए इस क्षेत्र से संबंधित आंकड़े भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) स्नो एंड अवलांच स्टडी इस्टेब्लिशमेंट (एसएएसई) मनाली और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटरोलॉजी से जुटाए गए थे. जलवायु परिवर्तन के कारण अनेक दुष्परिणाम सामने आ रहे है. यदि यह सब ऐसे ही चलता रहा, तो हमारी पृथ्वी को आग का गोला बनते देर न लगेगी. और तब क्या होगा इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती जिस तरह जलवायु परिवर्तन के कारण डायनासोर धरती से अचानक विलुप्त हो गए. ठीक उसी तरह जलवायु परिवर्तन के कारण अन्य जीव-जंतुओं पर भी ऐसा ही खतरा मंडरा रहा है. एक अनुमान के मुताबिक, 2050 तक पृथ्वी के 40 फीसदी जीव-जंतुओं का खात्मा हो जाएगा! इतना ही नहीं जलवायु परिवर्तन का खासा असर इंसानों पर भी पड़ने वाला है जिससे हम अनभिज्ञ नहीं है लेकिन हाँ सतर्क भी नहीं.
समस्या :- यूं तो ५ जून को सारा विश्व ''विश्व पर्यावरण दिवस'' के रूप में मनाता हैं इस दिन हम संकल्प लेते है पर्यावरण को संरक्षित करने का व प्रकृति का दोहन रोकने का. पर्यावरण संरक्षण की बातें संस्थाओं, राजनेताओं द्वारा खूब प्रचारित की जाती है. लेकिन धरातल पर लाने के प्रयास न के बराबर है. देशभर में हजारों संस्थाएं है जो पर्यारण संरक्षण पर कार्य कर रही है जिन्हें प्रत्येक वर्ष करोड़ों रूपये का अनुदान भी मिल रहा है. कागजी आंकड़ों और आसमानी योजनाओं के रिकार्ड को खंगाले तो ऐसा लगता है मानों इन्हीं के कारण पूरी दुनिया हरी-भरी है. जबकि हकीकत में देखा जाए तो तस्वीर दूसरी है. पर्यारण संरक्षण के लिए उठाए जाने वाले दूरगामी कदम व योजनाओं के प्रति उदारता नहीं दिखाई जाती. पिछले वर्ष दुनिया भर के देशों ने एक जगह बैठक ग्लोबल वार्मिंग पर मंथन किया. खूब हंगामा हुआ, खूब आरोप-प्रत्यारोप मड़े गए, नतीजा में क्या निकला? न पर्यावरण के प्रति कोई चिंतित दिखा और न ही कोई आगे आकर अपने देश में कार्वन उत्सर्जन को कम करने पर राजी हुआ. जहां तक भारत देश की बात की जाए तो यहां भी सरकारी योजनाएं खूब बनती है. अरबों का बजट भी होता है. लेकिन योजनाएं अमल में आने से पहले या तो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है या फिर सही संरक्षण न हो पाने से विफल हो जाती है. दूसरे पहलुओं में प्रकृति के दोहन की भी देश में योजनाएं निर्माणाधीन है. बड़े-बड़े बांध, उद्योग निर्माण कार्यों के चलते प्रकृति से खिलवाड़ किया जा रहा है. विकास की अंधी रफ्तार में प्रकृति को भी पहली सीढ़ी बनाया जा रहा है. जिसका ही नतीजा है कि आज प्राकृतिक असंतुलल पैदा हो गया है. बिन मौसम बरसात, बाढ़, प्रकोप, कम बारिश होना, झुलसने वाली गर्मी, सूखा जैसी स्थितियां प्रकृति से की जा रही छेड़खानी का ही नतीजा है. धरती के वस्त्र और आभूषण, नदियां, जंगल, पहाड़ है. लालच की पराकाष्ठा को अपनाने वाले विकास ने इन्हें नष्ट करके धरती को नंगा कर दिया है. जिंदा रहने के लिए सांस लेना जरूरी है, लेकिन फैक्ट्रियों और वाहनों की रासायनिक धुँए से हवा में लगातार कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ रही है जो जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है. एक रिसर्च के मुताबिक आने वाले सौ सालों में वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा मौजूदा स्तर की तीन गुना हो जाएगी. तब हर किसी को ऑक्सीजन मास्क पहनने की ज़रुरत पड़ेगी दूसरी और सडकों के निर्माण और उद्योगों के विस्तार के चलते अंधाधुंध पेड़ों की कटाई से वर्षा का प्रभावित होना भी जलवायु परिवर्तन का एक विशेष कारण रहा है परिणाम स्वरुप धरती के जलस्तर में भी गिरावट आ रही है पूरे देश में मौजूदा पानी किल्लत यही दर्शाती है. हरे-भरे वातावरण के प्रति लोगों में चेतना आने के बावजूद हालात बद से बदतर हुए है. सामाजिक रूप से हमारे अंदर पर्यारण से जुड़े मुद्दों के प्रति चिंता बढ़ी है. या अच्छा है, लेकिन हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि हम पर्यावरण प्रबंधन को लेकर विफल हो रहे है. समाज के रूप में हमें न केवल पर्यावरण के प्रति जागरूक होना है, बल्कि उसके लिए कुछ करना भी हैं इस समस्या का समाधान आसान नहीं हैं मगर पर्यावरण की चुनौती आज भी कायम है.
पर्यावरण संरक्षण के प्रयास :-
* जंगलों को न काटे.
* जमीन में उपलब्ध पानी का उपयोग तब ही करें जब आपको जरूरत हो.
* कार्बन जैसी नशीली गैसों का उत्पादन बंद करे.
* उपयोग किए गए पानी का चक्रीकरण करें.
* ज़मीन के पानी को फिर से स्तर पर लाने के लिए वर्षा के पानी को सहेजने की व्यवस्था करें.
* ध्वनि प्रदूषण को सीमित करें.
* प्लास्टिक के लिफाफे छोड़ें और रद्दी कागज के लिफाफे या कपड़े के थैले इस्तेमाल करें.
* जिस कमरे मे कोई ना हो उस कमरे का पंखा और लाईट बंद कर दें.
* पानी को फालतू ना बहने दें.
* आज के इंटरनेट के युग मे, हम अपने सारे बिलों का भुगतान आनलाईन करें तो इससे ना सिर्फ हमारा समय बचेगा बल्कि कागज के साथ साथ पैट्रोल डीजल भी बचेगा.
* ज्यादा पैदल चलें और अधिक साइकिल चलाएंगे.
* प्रकृति से धनात्मक संबंध रखने वाली तकनीकों का उपयोग करें. जैसे :- जैविक खाद का प्रयोग, डिब्बा-बंद पदार्थो का कम इस्तेमाल.
* जलवायु को बेहतर बनाने की तकनीकों को बढ़ावा दें.
* पहाड़ खत्म करने की साजिशों का विरोध करें.
आज ज़रुरत है 5 जून के वास्तविक महत्व को समझने की और पर्यावरण के संरक्षण के प्रति खुद को संकल्पित करने की पर्यावरण संरक्षण दिवस साल में एक बार महज़ एक औपचारिकता के रूप में मनाने का दिन नहीं है बल्कि स्वयं को दूसरों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रेरित करने का है किसी ने सच ही कहा है "हम बदलेंगे जग बदलेगा, हम सुधरेंगे जग सुधरेगा" यदि पूरे साल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम किया जाय ऐसे आयोजन किये जाएँ जहां आमजनमानस में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता लाइ जा सके पेड़ों की कटाई करने की अपेक्षा ज़्यादा से ज्यादा मात्रा में नए पेड़ और उद्यान लगाये जाएँ, धरती के जल स्तर को संतुलित करने के लिए इमारतों, घरों और सडकों का निर्माण "वाटर हारवेस्टिंग" प्रणाली के तहत किया जाये उद्योगों का रासायनिक कचरा नष्ट करने की विधी विकसित की जाए जो सीधे तौर पर पर्यावरण को इतना नुकसान न पहुंचा सकें. सामान्य तौर पर हो वाहनों के प्रयोग में कमी लाई जाये तो जलवायु में होने वाले इस क्रमिक परिवर्तन को रोका जा सकता है. आज वास्तविक ज़रूरत है प्रकृति का 'दोहन' नहीं बल्कि 'संरक्षण' किया जाए. ताकि ग्लोबल वार्मिंग जैसी गंभीर समस्या पर विजय हासिल हो सके.
इनसे करो सदा तुम प्यार.
इनकी रक्षा धर्म तुम्हारा.
ये हैं जीवन का आधार..
(कमल सोनी)>>>> 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस है. प्रकृति के अंधाधुंध दोहन ने हालात ख़राब कर दिया है, हम अपने स्वार्थ में आने वाली पीढ़ी की चिंता नहीं कर रहे हैं. साल-दर-साल बारिश का कम होना, भूजल स्तर कम होना और इसके विपरीत गर्मी की तपन बढ़ते जाना आदि चीजें सीधे-सीधे इसी पर्यावरण से जुड़ी हैं. जब इसके दृष्टिगोचर होते परिणामों के बाद अब तो हमें चेत ही जाना चाहिए कि यह पर्यावरण हमारे लिए जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी है. और इसके दोहन नहीं संरक्षण की ज़रूरत है. तो क्यों न सर्वप्रथम इसकी रक्षा की जाए और समय रहते ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों से बचा जाए. सच पूछें तो पर्यावरण की सुरक्षा के लिए हमे कुछ ज्यादा करना भी नहीं है. सिर्फ एक पहल करनी है यानी खुद को एक मौका देना है. हमारी छोटी-छोटी, समझदारी भरी पहल पर्यावरण को बेहद साफ-सुथरा और तरो-ताजा कर सकती है. प्रदूषण न केवल राष्ट्रीय अपितु अन्तर्राष्ट्रीय भयानक समस्या है. मनुष्य के आसपास जो वायुमंडल है वो पर्यावरण कहलाता है. पर्यावरण का जीवजगत के स्वास्थ्य एवं कार्यकुशलता से गहरा सम्बन्ध है. पर्यावरण को पावन बनाए रखने में प्रकृति का विशेष महत्व है. प्रकृति का संतुलन बिगड़ा नहीं कि पर्यावरण दूषित हुआ नहीं. पर्यावरण के दूषित होते ही जीव- जगत रोग ग्रस्त हो जाता है. वातावरण में संतुलन बनाए रखने वाला माध्यम अर्थात् पेड़- पौधे उपेक्षा का शिकार बनाए जा रहे हैं. समय रहते यह क्रम यदि रुका नही, वृक्षारोपण अभियान तीव्रता से तथा सुरक्षात्मक ढंग से यदि चलाया नही गया, तो प्रदूषण असाध्य रोग बन जाएगा. मनुष्य तथा अन्य वन जीवों को अपने जीवन के प्रति संकट का सामना करना पड़ रहा है. प्रदूषित पर्यावरण का प्रभाव पेड़ पौधे एवं फसलों पर पड़ा है. समय के अनुसार वर्षा न होने पर फसलों का चक्रीकरण भी प्रभावित हुआ है. प्रकृति के विपरीत जाने से वनस्पति एवं जमीन के भीतर के पानी पर भी इसका बुरा प्रभाव देखा जा रहा है. जमीन में पानी के श्रोत कम हो गए हैं. इस पृथ्वी पर कई प्रकार के अनोखे एवं विशेष नस्ल की तितली, वन्य जीव, पौधे गायब हो चुके हैं. कहा भी जाता है कि एक पेड़ लगाने से एक यज्ञ के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है. कम से कम एक पेड़ जरूर लगाएँ और इसकी देखभाल भी करें. कुछ वर्षों बाद यह बड़ा होगा देखकर दिल को सुकून देगा. हर साल या 2 साल में या 5 साल में भी 1-1 वृक्ष आपने लगाया तो मैं समझता हूँ प्रकृति भी इसका तहेदिल से जरूर शुक्रिया अदा करेगी और आगे चलकर इससे निश्चित रूप से हम लाभान्वित होंगे.
संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहल :- विश्व पर्यावरण दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1972 में की थी. इसी साल मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम कॉन्फ्रंस आयोजित की गई. विश्व पर्यावरण दिवस दरअसल, इसके प्रतीक के रूप में ही निर्धारित किया गया था. तभी से यह हर साल पांच जून को मनाया जाता है. विश्व पर्यावरण दिवस के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र दुनियाभर में पर्यावरण के प्रति जागरूकता कायम करने का प्रयास करता है. इसी दिन विभिन्न देशों में पर्यावरण सुरक्षा से जुड़े कई सरकारी कार्यक्रम भी शुरू किए जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि पर्यावरण की सुरक्षा आम आदमी की कोशिशों से ही संभव हो सकती है. सभी को समझाना होगा कि इस काम के लिए वह कितने ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. पूरी दुनिया को पर्यावरण बचाने के लिए लोगों के साथ देशों को भी आपस में मिलकर काम करना होगा, जिससे दुनियाभर के लोग सुरक्षित और संपन्न भविष्य का लाभ ले सकें. लेकिन इस वर्ष हम 38 वां विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं पिछले 38 सालों से इस परम्परा का बखूबी पालन कर रहे हैं लेकिन इसके कितने बेहतर परिणाम मिले वे हमारे सामने ही है. हालाकि इस दिशा में कुछ हद तक सफलता ज़रूर मिली लेकिन क्या इसे सराहनीय कहा जा सकता है... .. ? क्या आज जो परिणाम हमारे सामने है उन्हें आशानुरूप कहा जा सकता है... .. ? नहीं
ग्लोबल वार्मिंग पर सामाजिक और राजनीतिक बहस :- वैज्ञानिक निष्कर्षों के प्रचार के कारण दुनिया में राजनीतिक और आर्थिक बहस छिड़ गई है. गरीब क्षेत्रों, खासकर अफ्रीका, पर बडा जोखिम दिखाई देता है जबकि उनके उत्सर्जन विकसित देशों की तुलना में काफी कम रहे हैं. इसके साथ ही, विकासशील देश की क्योटो प्रोटोकॉल के प्रावधानों से छूट संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया, द्वारा नकारी गई है और इसको अमेरिका के अनुसमर्थन का एक मुद्दा बनाया गया है. जलवायु परिवर्तन का मुद्दा एक नया विवाद ले आया है कि ग्रीनहाउस गैस के औद्योगिक उत्सर्जन को कम करना फाइदेमंद है या उस पर होने वाला खर्च ज्यादा नुकसानदेह है कई देशों में चर्चा की गई है कि वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को अपनाने में कितना खर्च आएगा और उसका कितना लाभ होगा. प्रतियोगी संस्थान और जैसी कंपनियों ने यह कहा है कि हमें जलवायु की ज्यादा बुरी हालत की कल्पना करके ऐसे कदम नही उठाने हैं जो बहुत ज्यादा खर्चीले हों. इसी तरह, पर्यावरण की विभिन्न सार्वजनिक लॉबी और कई लोगों ने अभियान शुरू किए हैं जो जलवायु परिवर्तन के जोखिम पर ज़ोर डालते हैं और कड़े नियंत्रण करने की वकालत करते हैं. जीवाश्म ईंधन की कुछ कंपनियों ने अपने प्रयासों को हाल के वर्षों में कम किया है या ग्लोबल वार्मिंग के लिए नीतियों की वकालत की है. विवाद का एक और मुद्दा है कि उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं जैसे भारत और चीन से कैसी उम्मीद की जानी चाहिए कि वे अपने उत्सर्जन को कितना कम करें. हाल की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के सकल राष्ट्रीय उत्सर्जन अमरीका से ज्यादा हो सकते हैं, पर चीन ने कहा है कि प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अमरीका से पाँच गुना कम है इसलिए उस पर यह बंदिश नही होनी चाहिए. भारत ने भी इसी बात को दोहराया है जिसे क्योटो प्रतिबंधों से छूट प्राप्त है और जो औद्योगिक उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है.
पूरी दुनिया के मुकाबले हिमालय ज्यादा तेज़ गति से गर्म हो रहा है एक आंकड़े के मुताबिक गत 100 वर्षों में हिमालय के पश्चिमोत्तर हिस्से का तापमान 1.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है. जो कि शेष विश्व के तापमान में हुए औसत इजाफे (0.5-1.1 डिग्री सेल्सियस) से अधिक है. रक्षा शोध एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) और पुणे विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने क्षेत्र में बर्फबारी और बारिश की विविधता का अध्ययन किया था वैज्ञानिकों ने पाया कि एक और बढ़ती गर्मी के कारण सर्दियों की शुरुआत अपेक्षाकृत देर से हो रही है तो दूसरी और बर्फबारी में भी कमी आ रही है. शोधकर्ताओं का कहना है कि पश्चिमोत्तर हिमालय का इलाका पिछली शताब्दी में 1.4 डिग्री सेल्सियस गर्म हुआ है जबकि दुनिया भर में तापमान बढ़ने की औसत दर 0.5 से 1.1 डिग्री सेल्सियस रही है. “अध्ययन का सबसे रोचक निष्कर्ष यह रहा कि पिछले तीन दशकों के दौरान पश्चिमोत्तर हिमालय क्षेत्र के अधिकतम और न्यूनतम तापमान में तेज इजाफा हुआ जबकि दुनिया के अन्य पर्वतीय क्षेत्रों जैसे कि आल्प्स और रॉकीज में न्यूनतम तापमान में अधिकतम तापमान की अपेक्षा अधिक तेजी से वृद्धि हुई है.” अध्ययन के लिए इस क्षेत्र से संबंधित आंकड़े भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) स्नो एंड अवलांच स्टडी इस्टेब्लिशमेंट (एसएएसई) मनाली और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटरोलॉजी से जुटाए गए थे. जलवायु परिवर्तन के कारण अनेक दुष्परिणाम सामने आ रहे है. यदि यह सब ऐसे ही चलता रहा, तो हमारी पृथ्वी को आग का गोला बनते देर न लगेगी. और तब क्या होगा इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती जिस तरह जलवायु परिवर्तन के कारण डायनासोर धरती से अचानक विलुप्त हो गए. ठीक उसी तरह जलवायु परिवर्तन के कारण अन्य जीव-जंतुओं पर भी ऐसा ही खतरा मंडरा रहा है. एक अनुमान के मुताबिक, 2050 तक पृथ्वी के 40 फीसदी जीव-जंतुओं का खात्मा हो जाएगा! इतना ही नहीं जलवायु परिवर्तन का खासा असर इंसानों पर भी पड़ने वाला है जिससे हम अनभिज्ञ नहीं है लेकिन हाँ सतर्क भी नहीं.
समस्या :- यूं तो ५ जून को सारा विश्व ''विश्व पर्यावरण दिवस'' के रूप में मनाता हैं इस दिन हम संकल्प लेते है पर्यावरण को संरक्षित करने का व प्रकृति का दोहन रोकने का. पर्यावरण संरक्षण की बातें संस्थाओं, राजनेताओं द्वारा खूब प्रचारित की जाती है. लेकिन धरातल पर लाने के प्रयास न के बराबर है. देशभर में हजारों संस्थाएं है जो पर्यारण संरक्षण पर कार्य कर रही है जिन्हें प्रत्येक वर्ष करोड़ों रूपये का अनुदान भी मिल रहा है. कागजी आंकड़ों और आसमानी योजनाओं के रिकार्ड को खंगाले तो ऐसा लगता है मानों इन्हीं के कारण पूरी दुनिया हरी-भरी है. जबकि हकीकत में देखा जाए तो तस्वीर दूसरी है. पर्यारण संरक्षण के लिए उठाए जाने वाले दूरगामी कदम व योजनाओं के प्रति उदारता नहीं दिखाई जाती. पिछले वर्ष दुनिया भर के देशों ने एक जगह बैठक ग्लोबल वार्मिंग पर मंथन किया. खूब हंगामा हुआ, खूब आरोप-प्रत्यारोप मड़े गए, नतीजा में क्या निकला? न पर्यावरण के प्रति कोई चिंतित दिखा और न ही कोई आगे आकर अपने देश में कार्वन उत्सर्जन को कम करने पर राजी हुआ. जहां तक भारत देश की बात की जाए तो यहां भी सरकारी योजनाएं खूब बनती है. अरबों का बजट भी होता है. लेकिन योजनाएं अमल में आने से पहले या तो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है या फिर सही संरक्षण न हो पाने से विफल हो जाती है. दूसरे पहलुओं में प्रकृति के दोहन की भी देश में योजनाएं निर्माणाधीन है. बड़े-बड़े बांध, उद्योग निर्माण कार्यों के चलते प्रकृति से खिलवाड़ किया जा रहा है. विकास की अंधी रफ्तार में प्रकृति को भी पहली सीढ़ी बनाया जा रहा है. जिसका ही नतीजा है कि आज प्राकृतिक असंतुलल पैदा हो गया है. बिन मौसम बरसात, बाढ़, प्रकोप, कम बारिश होना, झुलसने वाली गर्मी, सूखा जैसी स्थितियां प्रकृति से की जा रही छेड़खानी का ही नतीजा है. धरती के वस्त्र और आभूषण, नदियां, जंगल, पहाड़ है. लालच की पराकाष्ठा को अपनाने वाले विकास ने इन्हें नष्ट करके धरती को नंगा कर दिया है. जिंदा रहने के लिए सांस लेना जरूरी है, लेकिन फैक्ट्रियों और वाहनों की रासायनिक धुँए से हवा में लगातार कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ रही है जो जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है. एक रिसर्च के मुताबिक आने वाले सौ सालों में वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा मौजूदा स्तर की तीन गुना हो जाएगी. तब हर किसी को ऑक्सीजन मास्क पहनने की ज़रुरत पड़ेगी दूसरी और सडकों के निर्माण और उद्योगों के विस्तार के चलते अंधाधुंध पेड़ों की कटाई से वर्षा का प्रभावित होना भी जलवायु परिवर्तन का एक विशेष कारण रहा है परिणाम स्वरुप धरती के जलस्तर में भी गिरावट आ रही है पूरे देश में मौजूदा पानी किल्लत यही दर्शाती है. हरे-भरे वातावरण के प्रति लोगों में चेतना आने के बावजूद हालात बद से बदतर हुए है. सामाजिक रूप से हमारे अंदर पर्यारण से जुड़े मुद्दों के प्रति चिंता बढ़ी है. या अच्छा है, लेकिन हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि हम पर्यावरण प्रबंधन को लेकर विफल हो रहे है. समाज के रूप में हमें न केवल पर्यावरण के प्रति जागरूक होना है, बल्कि उसके लिए कुछ करना भी हैं इस समस्या का समाधान आसान नहीं हैं मगर पर्यावरण की चुनौती आज भी कायम है.
पर्यावरण संरक्षण के प्रयास :-
* जंगलों को न काटे.
* जमीन में उपलब्ध पानी का उपयोग तब ही करें जब आपको जरूरत हो.
* कार्बन जैसी नशीली गैसों का उत्पादन बंद करे.
* उपयोग किए गए पानी का चक्रीकरण करें.
* ज़मीन के पानी को फिर से स्तर पर लाने के लिए वर्षा के पानी को सहेजने की व्यवस्था करें.
* ध्वनि प्रदूषण को सीमित करें.
* प्लास्टिक के लिफाफे छोड़ें और रद्दी कागज के लिफाफे या कपड़े के थैले इस्तेमाल करें.
* जिस कमरे मे कोई ना हो उस कमरे का पंखा और लाईट बंद कर दें.
* पानी को फालतू ना बहने दें.
* आज के इंटरनेट के युग मे, हम अपने सारे बिलों का भुगतान आनलाईन करें तो इससे ना सिर्फ हमारा समय बचेगा बल्कि कागज के साथ साथ पैट्रोल डीजल भी बचेगा.
* ज्यादा पैदल चलें और अधिक साइकिल चलाएंगे.
* प्रकृति से धनात्मक संबंध रखने वाली तकनीकों का उपयोग करें. जैसे :- जैविक खाद का प्रयोग, डिब्बा-बंद पदार्थो का कम इस्तेमाल.
* जलवायु को बेहतर बनाने की तकनीकों को बढ़ावा दें.
* पहाड़ खत्म करने की साजिशों का विरोध करें.
आज ज़रुरत है 5 जून के वास्तविक महत्व को समझने की और पर्यावरण के संरक्षण के प्रति खुद को संकल्पित करने की पर्यावरण संरक्षण दिवस साल में एक बार महज़ एक औपचारिकता के रूप में मनाने का दिन नहीं है बल्कि स्वयं को दूसरों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रेरित करने का है किसी ने सच ही कहा है "हम बदलेंगे जग बदलेगा, हम सुधरेंगे जग सुधरेगा" यदि पूरे साल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम किया जाय ऐसे आयोजन किये जाएँ जहां आमजनमानस में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता लाइ जा सके पेड़ों की कटाई करने की अपेक्षा ज़्यादा से ज्यादा मात्रा में नए पेड़ और उद्यान लगाये जाएँ, धरती के जल स्तर को संतुलित करने के लिए इमारतों, घरों और सडकों का निर्माण "वाटर हारवेस्टिंग" प्रणाली के तहत किया जाये उद्योगों का रासायनिक कचरा नष्ट करने की विधी विकसित की जाए जो सीधे तौर पर पर्यावरण को इतना नुकसान न पहुंचा सकें. सामान्य तौर पर हो वाहनों के प्रयोग में कमी लाई जाये तो जलवायु में होने वाले इस क्रमिक परिवर्तन को रोका जा सकता है. आज वास्तविक ज़रूरत है प्रकृति का 'दोहन' नहीं बल्कि 'संरक्षण' किया जाए. ताकि ग्लोबल वार्मिंग जैसी गंभीर समस्या पर विजय हासिल हो सके.
उपचार
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
नेताजी कई दिन से बीमार थे । अस्पताल के कई बड़े डॉक्टर
परिचर्या में लगे हुए थे । दवाइयाँ भी बदल-बदलकर दी जा रही थीं। नेताजी
की मूर्च्छा फिर भी न टूट पाई । चिन्ता बढ़ती जा रही थी । गण व्याकुल हो
उठे । प्रमुख गण को एक उपाय सूझा । वह दौड़ा-दौड़ा एक दूकान पर गया । वहाँ
पार्टी के प्रान्तीय अध्यक्ष की कुर्सी मरम्मत के लिए आई थी । वह घण्टे भर
के लिए कुर्सी माँग लाया । चार लोगों ने भारी-भरकम नेता जी को कुर्सी पर
बिठा दिया । उनकी चेतना लौट आई ।
डॉक्टरों ने राहत की साँस ली ।
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Friday, 4 May 2012
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